भारतीय खानपान संस्कृति में "कढ़ी" अपना एक अलग ही मुक़ाम व पहचान रखती हैं “Kadhi” has its own place and identity in Indian food culture.

कृपया इस पोस्ट को बेहद तसल्ली से पढ़ें और गंभीरता से समझें....

कड़कड़ाती सर्दियों में मोटे अनाज के दलिया, खीच, खीचड़ा, घाट, राब, राबड़ी, गलवाणी आदि व्यंजनों के ज़ायके का आनंद लेने के बाद, आज वातावरण के अनुसार हमारी थाली में आयी 36 बघार वाली कढ़ी, पूड़ी, चावल, मटर पत्तागोभी की सब्जी और साथ में तली हुई हरीमिर्च


भारतीय खानपान संस्कृति में "कढ़ी" अपना एक अलग ही मुक़ाम व पहचान रखती हैं.
जब भी दही या छाछ से कोई व्यंजन बनाना हो तो सबसे पहले जहन में आती है "कढ़ी"... जिसे राजस्थान के कई क्षेत्रों में विशेषकर मेवाड़ व मारवाड़ में "खाटो" या "खाट्या" बोलते हैं.
आज समग्र विश्व में फैले हुए को-रोना वायरस से लड़ने के लिए हमारी इम्युनिटी बूस्ट करने वाली विश्वविख्यात भारतीय कढ़ी... महज एक सब्जी नही है हमारी भारतीय कढ़ी... विशेषकर हमारे जोधाणा में बनाई जाने वाली 36 प्रकार की सामग्री के बघार से बनी ये ज़ायकेदार व स्वास्थ्यवर्धक कढ़ी...
कई भारतीय जड़ी बूटियों और मसालों के एक्सट्रैक्ट का अनूठा संगम लिए ये कढ़ी एक आयुर्वेदिक काढ़ा से भी उत्तम है, जो कि हमारे शरीर को डिटॉक्स करके सर्वोत्तम इम्युनिटी बूस्टर का काम करती है. जिसके कारण मानव शरीर किसी भी प्रकार के वायरस, बैक्टीरिया से पैदा होने वाली बीमारियों और हर तरह के कैंसर से लड़ने की आंतरिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है.
कढ़ी में डाले जाने वाले इन सभी 36 प्रकार की सामग्री के स्वास्थ्यवर्धक गुणों की अगर व्याख्या की जाय तो पूरी एक पुस्तक लिखी जा सकती है.


"शुद्ध शाकाहारी खानपान से स्वस्थ जीवन"
भारत भर में बेसन व छाछ दही से बनने वाली विभिन्न प्रकार की कढ़ी को अन्य प्रांतों में चावल और खिचड़ी आदि के साथ खाया जाता है, लेकिन राजस्थान में इसी कढ़ी यानी खाटो को थोड़ा गाढ़ा रखते हुए गेँहू की रोटी, बाजरे की रोटी या मक्की की रोटी के साथ सब्जी की तरह मुख्य रूप से खाया जाता है.
मारवाड़ सहित राजस्थान के पारम्परिक स्वाद में बेसन की कढ़ी यानी खाटो कई तरह से बनाई जाती है, जैसे केवल बेसन की, काले चने की, चने की दाल की, बेसन के चिलडे की और मौसम के अनुसार उपलब्ध सब्जियों की आदि आदि...
मारवाड़ी में कहे तो.."कांदा रो खाटो", "कांदा री पुली रो खाटो", "सांगरिया रो खाटो", "कुमटियौ रो खाटो", "केर रो खाटो", "राबोडी रो खाटो', "बड़ियां रो खाटो", "बेसन रा बडा रो खाटो", "आखा चवळां रो खाटो", "लसन रो खाटो", "मेथी रो खाटो", "बेसन रा चिलडा रो खाटो", "आलू रो खाटो", "काला चीणा रो खाटो", "मोठा रो खाटो"... आदि आदि मुँह में पानी लाने वाला तरह तरह का खाटा👍
क्षेत्रीय स्वाद के अनुसार सभी भारतवासी इस लोकप्रिय कढ़ी को अपने अपने तरीक़े से बनाते हैं.
बेसन छाछ या दही से बनने वाली कढ़ी का ज़ायका बढ़ाने के लिए उसमें लगाये जाने वाले छौंक यानी तड़का यानी बघार का बहुत ही अहम भूमिका रहती है.
उस छौंक को और भी प्रभावी ढंग से उभारती हैं उसमें डाले जाने वाले विभिन्न प्रकार के बघार की सामग्री....
मारवाड़ में कढ़ी को बहुत ही शाही तरीक़े से बनाने में 36 तरह की सामग्री के बघार लगाये जाते हैं.
जिनमें प्रमुख सामग्रियां हैं... लहसुन, जीरा, अजवाइन, हींग, साबुत धनिया, कलौंजी, राई, सरसों, साबुत लालमिर्च, कालीमिर्च, लौंग, बड़ी इलायची, हरी इलायची, तेजपत्ता, दालचीनी, जायफल, कढ़ी पत्ता, शाही जीरा, दाना मेथी, कसूरी मेथी, सौंफ, सौंठ, अदरक, केसर, जावित्री, पिप्पली, चकरी फूल, अकरखरा, कबाबचीनी, खसखस, अनारदाना, मगज के बीज, हरड़ आदि और भी बघार सामग्री जैसे स्वर्ण और रजत धातु के सिक्कों से शाही कढ़ी को स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वाधिक ज़ायकेदार बनाया जाता हैं.


इनमें से कई छौंक या बघार की सामग्री कढ़ी बनने की प्रक्रिया के शुरुआत में ही प्रयोग की जाती है, कई बघार की सामग्री कढ़ी के उबाल आने के दौरान काम में ली जाती है, और कई बघार सामग्री को कढ़ी के पूरी तरह से पकाने के बाद प्रयोग किया जाता है.
इस स्वादिष्ट कढ़ी को ज़ायकेदार बनाने में छौंक तड़का या बघार के अलावा मुख्य भूमिका बिलोने की छाछ और कढ़ी के उबलने यानी रढने में लगने वाले समय की होती हैं. मध्यम आंच पर कढ़ी के देर तक उबालने से इसमें डाले गए छौंक सामग्री, मसाले व जड़ी बूटियों का (Indian spices and herbs) का एक्सट्रैक्ट पूरी तरह से कढ़ी के ज़ायके में रच बस जाता है.
ऐसी कढ़ी बनाने में करीब डेढ़ से दो घंटे तक का समय लग जाता है.
मारवाड़ की शाही कढ़ी बनाने के लिए छाछ में बेसन को कुछ मसालों के साथ कुछ समय तक भिगोकर रख कर हल्का सा फरमेन्ट होने पर लोहे की कढ़ाही में देशी घी में विभिन्न सामग्रियों का छौंक लगाकर बाद में मद्धम आंच पर 108 उबाल आने तक व लसलसापन ख़तम होने तक पकाया जाता है. बनाने के बाद कढ़ी न ज़्यादा गाढ़ी होनी चाहिए ना ही ज़्यादा पतली रहनी चाहिए.
कढ़ी बनाने के बाद सोने व चांदी के सिक्कों को आग पर तपाकर कढ़ी में छौंक लगाया जाता था और फिर कढ़ी के खत्म होने के बाद ही उन सिक्कों को निकाला जाता था. इससे कढ़ी के ज़ायके में एक अनूठा संगम मिलता था और स्वर्ण रजत के गुण कढ़ी में समाहित हो जाते थे.


इस तरह के 36 प्रकार की बघार सामग्री से बनी कढ़ी न केवल एक सब्जी रह जाती है बल्कि एक तरह का भारतीय जड़ी बूटियों का स्वास्थ्यवर्धक काढ़ा बन जाता है जो कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर कई तरह की जटिल बीमारियों से रक्षा करने में बहुत ही सहायक सिद्ध होता है.
इस 36 बघार वाली शाही कढ़ी को किसी की नजर न लग जाए तो इसके लिए अंत में जलते हुए कोयले पर देशी घी डालते हुए बघार लगाया जाता है. जिसे मारवाड़ में "कढ़ी में कोयलो" कहते हैं..☺️
हमारे मारवाड़ में कहावत है कि
"कढी तो रडी भली, सीजी भली के दाल,
अध सीजीया मूला भला तीनो गुणाकार"
यानी कढ़ी को जितना अधिक रढाया (उबाला) जाता है उतनी ही स्वादिष्ट बनती है, उसी तरह दाल को अच्छी तरह पकाया जाता है, उतनी ही अच्छी होती है और मूली अधपकी ही गुणकारी होती है.
क्या आप भी अपनी कढ़ी को इस शाही तरीक़े से बनाना चाहते हैं तो देर किस बात है.

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