ऑस्ट्रेलिया का विजय रथ शुरू हुआ Australia's victory procession begins

ये वो विश्वकप था जिस विश्वकप के बाद ऑस्ट्रेलिया का विजय रथ शुरू हुआ। इसी विश्वकप के बाद ऑस्ट्रेलिया की बपौती शुरू हुई थी। पर इस विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया की हालत उसी तरह थी जैसे हर वर्ल्डकप में पाकिस्तान की।




इस विश्वकप की सबसे धाकड़ टीम साउथ अफ्रीका मानी जाती थी। बेहतरीन फिल्डिंग, बोलिंग और बैटिंग। ग्रुप स्टेज के पांच में से चार मैच जीते थे साउथ अफ्रीका ने। इंडिया, इंग्लैंड जैसी मजबूत टीमों को हराया था अफ्रीका ने, बस एक मैच हारे वो भी जिम्बांब्वे के खिलाफ। वो भी आज की जिम्बांबवे नही थी। साउथ अफ्रीका घोड़े पर चढ़ कर अगले स्टेज में पहुंची थी तो ऑस्ट्रेलिया वालो का हाल ये था की उनके आखिरी मैच में कंफर्म हुआ की वो अगले स्टेज में पहुचेंगे। और अगले स्टेज में जगह बनाने के लिए 111 रन 47.2 ओवर में बनाने थे। माइटी ऑस्ट्रेलिया ने ये लक्ष्य इकतालीसवे ओवर में हासिल किया। अपने ग्रुप स्टेज में ऑस्ट्रेलिया ने जो तीन मैच जीते वो बांग्लादेश, स्कॉटलैंड और वेस्ट इंडीज के खिलाफ थे। पाकिस्तान और न्यूजीलैंड से हार गए थे। वेस्ट इंडीज रन रेट की वजह से बाहर हो गई थी। फिर सेमीफाइनल हुआ ऑस्ट्रेलिया बनाम साउथ अफ्रीका। लास्ट में चार गेंद पर एक रन चाहिए था।लांस क्लूजनर के सामने एलान डोनाल्ड थे नॉन स्ट्राइक पर। क्लूजनर ने गेंद को बैट के करीब आने दिया फिर भाग गए रन लेने। सामने नॉन स्ट्राइक पर खड़े एलान डोनाल्ड को समझ ही नही आया कि करना क्या है, वो बेसिक भूल गए क्रिकेट में रनिंग का, ना तो अपने पार्टनर की तरफ
देखा और न ही गेंद की तरफ। ऐसा भी नही कि उस रन आउट में ऑस्ट्रेलिया ने बहुत जोंटी रोड के लेवल की फील्डिंग की थी, जब उन्होंने डोनाल्ड को रनआउट किया था तो क्लूजनर शॉट खेलकर डेढ़ रन भाग चुके थे और डोनाल्ड अपनी ही परिधि में नाचे जा रहे थे। उस लास्ट ओवर में ऐसा कुछ भी नही हुआ था जिस बुनियाद पर ये कहा जाए की ऑस्ट्रेलिया ने खेल में हरा दिया हो अफ्रीका को। खैर मैच टाई हुआ और ऑस्ट्रेलिया को रनरेट के हिसाब से फाइनल का टिकट मिल गया। वो मैच ऑस्ट्रेलिया ने डॉनल्ड की बेवकूफी से जीता था, ऐसा भी नही था कि उन्होंने रनआउट वैसा किया हो जैसा धोनी ने बांग्लादेश के खिलाफ किया था। डोनाल्ड अगर क्लूजनर की तरफ देख भर लेते, तो वो रन हो जाना था। पर किस्मत की धनी ऑस्ट्रेलिया शुरू से थी। खैर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया पूरे ताव से खेली और वहा से शुरू हुआ ऑस्ट्रेलिया का असल डोमिनेन्स वर्ल्ड क्रिकेट में। ये बात तथ्य है की वो विश्वकप ऑस्ट्रेलिया ने जीता पर ऑस्ट्रेलिया बेस्ट टीम नही थी उस वर्ल्ड कप की, बस उनकी तकदीर अच्छी थी।
विश्व कप 2003 साउथ अफ्रीका


ये विश्वकप मुझे इसलिए भी याद है कि इस विश्वकप के गोल्डन बैट दिया गया था जिसे बाद में क्यू बंद कर दिया गाय ये समझ से परे है। ऑस्ट्रेलिया बहुत तूफानी टीम लेकर आई थी, उनके पास मैकग्राथ जैसा तजुर्बा था तो ब्रेट ली का गर्म खून। एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया का रास्ता रोकने की जिम्मेदारी एशियाई टीमों पर थी। सेमी फाइनल में श्री लंका और फाइनल में इंडिया। अफ्रीका की पिच कंडीशन ऑस्ट्रेलिया के मिजाज मुताबिक थी। ढंग की टक्कर वही टीम दे सकती थी जो इस तरह के कंडीशन की आदी थी। न्यूजीलैंड और इंग्लैड राजनीति की भेट चढ़ गए और अफ्रीका को बारिश ने निचोड़ दिया। बेशक वो प्राइम था ऑस्ट्रेलिया। क्रिकेट के जितने भी डिपार्टमेंट होते है, सब में ऑस्ट्रेलिया बाकी सभी टीम से बीस कदम आगे थी। पर हकीकत ये भी है कि ऑस्ट्रेलिया के लेवल की क्रिकेट उस विश्व कप में कोई टीम खेल ही नही रही थी। 2003 और 2007 के वर्ल्ड कप की सबसे बेहतरीन टीम थी आस्ट्रेलिया।
2007 टी20 विश्व कप
ऑस्ट्रेलिया विजय रथ पर सवार थी, और टी20 विश्वकप में ऑस्ट्रेलिया ने अपनी फुल पावर टीम भेजी। जिम्बांबे से हार गए थे ये लोग। पहले जिम्बाम्बे ने ऑस्ट्रेलिया को 139 पर बुक किया फिर पांच विकेट खोकर लक्ष्य हासिल कर लिया। तब ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी जो पेट से जीतना सीख कर आते थे, सारी विद्या भूल गए थे। इस वक्त आईपीएल या बिग बैश था नही, होता तब भी ऑस्ट्रेलिया की परफॉर्मेंस को खराब दिन ही कहा जाता।फिर भी ऑस्ट्रेलिया जब सेमीफाइनल में पहुंची तो एक बार फिर हव्वा खड़ा हुआ कि माइटी असीज़ को कौन हरा सकता है नोकआउट में। युवराज सिंह से हार गए थे ये लोग।


2011 विश्व कप भारत
इस दफा भी जब ऑस्ट्रेलिया क्वार्टर फाइनल में पहुंची तो सामने इंडियन टीम थी। तब भी अपने देश में कुछ ऑस्ट्रेलिया के भक्त थे, जो कह रहे थे कि टी20 की बात अलग थी। ओडीआई विश्वकप के नॉकआउट में कोई नही हरा सकता ऑस्ट्रेलिया को। खैर ये लोग फिर हार गए, इंडिया से नही युवराज सिंह से। 1999 के बाद पहला ऐसा मौका आया जब फाइनल में दोनो एशियाई टीमें थी। बाकी तो सन 92 के बाद हर दफा फाइनल में एक एशियाई टीम रहती ही रहती थी।
2015 विश्व कप
बहुत दिनों बाद ऐसा मौका आया था जब बार बार इंडिया से नॉकआउट में हारने के बाद ऑस्ट्रेलिया ने इंडिया को सेमीफाइनल में हराया। और वो एक तरफा हार थी, हम खड़े नही हो पाए ऑस्ट्रेलिया के सामने जबकि लगातार अच्छा खेल रहे थे। दिन खराब होता है हर टीम का, पर हमारा जब दिन खराब होता है तो आईपीएल और न जाने क्या क्या गिनाए जाते है। जबकि इंडियन टीम दुनिया की इकलौती टीम है जो अपनी घरेलू लीग के अलावा दुनिया की और कोई लीग नही खेलती।
2019 विश्व कप
इस विश्व कप में सेमीफाइनल में इंडिया भी पहुंची थी और आस्ट्रेलिया भी। इंडिया न्यूजीलैंड से हार गई। थोड़े अंतर से लड़ भिड़ के। पर ऑस्ट्रेलिया वालो को सेमीफाइनल में इंग्लैंड ने दौड़ा दौड़ा कर पीटा था। पहले 223 पर समेटा, फिर बैटिंग में इतना मारे इंग्लैंड वाले इतना मारे कि 33वे ओवर में चेज कर लिया। माइटी आसीज दो विकेट ले पाए, और जब हारे तो सौ से ज्यादा गेंदे बची थी। पर भारत का हारना थोड़ा अलग हारना था, भारतीय टीम में नॉकआउट खेलने की क्षमता नही है, वो कैलीबर वो बारूद नही जो ऑस्ट्रेलिया में है।तब कोई नही बताने आया की देखो ऑस्ट्रेलिया में कोई रिकॉर्ड के लिए नही खेलता ऐसे खेलता है वैसे खेलता है इसलिए कभी हारती नही। तब सब ऑस्ट्रेलिया के समर्थक भारत को गरियाने में व्यस्त थे, क्युकी वो ऑस्ट्रेलिया के समर्थक है ही इसलिए की भारतीय टीम को गरिया सके क्युकी उनका फेवरेट खिलाड़ी अब टीम में नही है। और ये लोग सिखाते है कि पूरी टीम का सपोर्ट करो एक खिलाड़ी का नही।
विश्व कप 2023
और इस वाले वर्ल्ड कप का हाल आप जानते ही है। गिरते पड़ते कैसे कैसे करके ऑस्ट्रेलिया पहुंची थी। अफगान के खिलाफ मैक्सवेल की पारी दूर से देखने में अच्छी लगती है। पर इसी हाल में जब न्यूजीलैंड का बल्लेबाज क्रैंप से जूझ रहा था तब इंडिया वालो ने पैर पर गेंद देना बंद कर दिया, ऑफ साइड की बाउंड्री खोल दी कि बेटा मारो कितना मार सकते हो। दो चार बाउंड्री मारने के बाद जब भाई की नस टूट गई वाइड यॉर्कर पर बल्ला भाजने में, तो वो अपने आप शांत हो गए। यही इंडिया की जगह अफगान होते तो ऐसी गेंदबाजी करते की पाव का नाखून हिलाने की जरूरत नही होती। फाइनल में ऑस्ट्रेलिया बहुत अच्छा खेली थी। प्लान था उनके पास, फिल्डिंग जोरदार हुई थी। और जाहिर सी बात है इंडियन टीम हर डिपार्टमेंट में ऑस्ट्रेलिया से पीछे रह गई थी। पर क्रिकेट में ये चीज अक्सर होती रहती है। ऑस्ट्रेलिया के साथ कम हुई है, पर वो भी अछूता नहीं रहा है। मैं ऑस्ट्रेलिया टीम की बुराई नही करना चाहता, न मैं ये कहता हु की वर्ल्ड कप डिजर्व नही करते। भाई फाइनल जीता है डंके की चोट पर जीता है। मुझे उन हुतियो पर हंसी आती है जो ऑस्ट्रेलिया के बहाने इंडियन टीम को टारगेट कर रहे है।ऐसा लिख रहे है जैसे ऑस्ट्रेलिया वाले वर्ल्ड कप जीतने का टॉनिक पीते है, और हमारे यहां वाले चाय समोसा। ऐसा नही है भाई, हमारी टीम तीन फॉर्मेट में नंबर वन है। नेपाल से खेलकर नंबर वन नही बने है। पूरे टूर्नामेंट में जलवा बनाए रखे थे, एक मैच खराब होने पर तुम करो ना तारीफ ऑस्ट्रेलिया की कौन मना कर रहा है। पर तुम कहो कि इंडियन टीम चाहती नही जीतना, ये लोग नॉकआउट जीत ही नही सकते, ये लोग आईपीएल में बिक गए है तो मेरे भाई जाकर पता करो, कौन किस्मत भरोसे जीतता आया है। किसके खिलाड़ी चंद डॉलर के लिए बीच में दौरा छोड़कर व्यापारी की टीम में शामिल हो गए थे, किस टीम के खिलाड़ियों को अपनी स्किल पर इतना डाउट था की साला सैंड पेपर लेकर खेलते थे। पकड़े एक बार ही गए थे। पता करो किस देश के खिलाड़ी साल में बस एक लीग खेलते है,और किस देश के खिलाड़ियों ने कनाडा पाकिस्तान कही की लीग नही छोड़ी है, सब खेले है। जाकर पता करो किस देश के खिलाड़ी इंडिया की पब्लिक के तलवे चाटते है ताकि रिटायरमेंट के बाद यहां करियर बना सके। एंड नोट, भाई ऑस्ट्रेलिया विश्व विजेता है नो डाउट। पर हमारी इंडियन टीम फाइनल में वॉकओवर लेकर नही गई थी, इस टीम और इसके जैसी नौ और को पीट पाट कर गए थे। नंबर गेम का इतना शौक है तो इंडियन टीम की रैंकिंग भी एक्सेप्ट करो।
ऊपर फोटो में ऑस्ट्रेलियन प्लेयर को आप अलग अलग लीग की जर्सी में देख सकते है, ये लोग पाकिस्तान सुपर लीग भी खेल चुके है। पैट कमिंस की आड़ लेकर भारतीय खिलाड़ियों को कोसना बंद कीजिए जो दूसरी लीग में तब पाव रखते है जब सन्यास ले ले।इसलिए देश के लिए कमिटमेंट हमे उनसे तो बिलकुल भी नहीं सीखने की जरूरत है जिनका कोच, अपने वाइस कैप्टन और कैप्टन को सैंड पेपर देता है क्युकी गूदा था नही सीधे सीधे जीतने का, और वो कब से दिया जा रहा था, किस किस टूर्नामेंट में इस का इस्तेमाल हुआ ये कोई नही जानता।

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